Sunday, July 10, 2011
Saturday, June 4, 2011
Sunday, January 23, 2011
वक्त गर उगता; चुपके से …
चुपके से बिखेर देता, कुछ लम्हे जिन्दगी की क्यारी में
भीग के बरसता मेंह,
नेँह का मेँह,
नेँह की सिंचाई और रिश्तों की गर्माहट से पकती फ़सल
लहकती, महकती, बहकती वक्त की बगिया
फ़सल कटती, सबमें बँटती,
कुछ लम्हेँ आधी ज़िन्दगी को,
कुछ से चुकता कर्ज़
कुछ लम्हेँ सूद पर देता
कुछ फ़िर से बिखेर देता क्यारी मेँ,
बाकी बचे, रखता अपनेँ लिये,
ढेर सारे लम्हेँ,
ढेर का ढेर,
सोने से दमकते,
मोगरे से महकते
चाँदनी सी ठण्डक,
सन्तूर से बजते, बहुत से लम्हेँ,
बेकाम से लम्हेँ
अलसाए कुछ उनींदे, वक्त के कतरे
बूँद - बूँद टपकते,
उछलते-कूदते, खेलते,
रिश्तों को मेलते,
ज़िन्दगी से खेलते
ज़िन्दगी को खूबसूरत बनाते
बिखेर देता, चुपके से बीज लम्होँ के,
वक्त गर उगता; चुपके से ……
300520100006
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