ये चुप सी शाम मैं और मेरी तन्हाई है
क्यूं परेशां मुझे करने तेरी याद आई है
इस कदर मैनें तुझे सोचा तो नहीं था
कि ज़हन में तेरी तस्वीर उभर आई है
तेरे नाज़ुक सुर्ख लबों को सोचने भर से
ये कैसी प्यास मेरे होठों पे चली आई है
जो खयालों में करूँ बात तुझसे तो लगता है यूँ
मेरे कानों में हौले से तु कुछ बुदबुदाई है
तब से दिलो दिमाग में बजे है कोई सरगम
जब से मेरे आँगन में तुने पायल छनकाई है
मैनें तो बस नज़र भर के देखा है तुझे
फिर क्यूँ तू दुलहन सी इतना लजाई है, शर्माई है
लगता है जैसे जिस्म से आँचल तेरा लिपटता जाता है
ठंडी हवा मेरे बदन पर हल्के से जो सरसराई है
240620012120
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